आक्षेप संख्या—10 Rig Veda 6.26.3 Thou didst impel the sage to win the daylight, didst ruin Susna for the pious Kutsa. The invulnerable demon’s head thou clavest when thou wouldst win the praise of Atithigva. हे इन्द्र! अन्न-लाभ करने के लिए तुम भार्गव ऋषि को प्रेरित करो। हव्यदाता कुत्स के लिए तुमने शुष्णासुर का छेदन […]
आक्षेप संख्या—9 Yajur Veda 5.26 By impulse of God Savitar I take thee with arms of Asvins, with the hands of Peahen.Thou art a woman. Here I cut the necks of Rakshasas away. Barley art thou. Bar off from us our haters, bar our enemies… देवस्य त्वा सवितु: प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आददे नार्यसीदमह-रक्षसां ग्रीवाऽ अपिकृन्तामि। […]
आक्षेप संख्या—8 (Beheading the Demons – Non Hindus) Atharva Veda 1.7.7 O Agni, bring thou hither ward the Yatudhanas bound and chained. And afterward let Indra tear their heads off with his thunder-bolt. त्वमग्ने यातुधानानुपबद्धाँ इहा वह। अथैषामिन्द्रो वज्रेणापि शीर्षाणि वृश्चतु॥ उत्पन्न हुआ है। हे अग्ने। तू हमारा दूत बनकर यातुधानों को विलाप करा॥ हे […]
आक्षेप संख्या—7 Rig Veda 1.103.6 “…The Hero, watching like a thief in ambush, goes parting the possessions of the godless.” Tr. Ralph T.H. Griffith अग्नीषोमा चेति तद्वीर्यं वां यदमुष्णीतमवसं पणिं गा:। अवातिरतं बृसयस्य शेषोऽविन्दतञ्ज्योतिरेकं बहुभ्य:॥ हे अग्निदेव और सोमदेव! आपका वह पराक्रम उस समय ज्ञात हुआ, जब आपने ‘पणि’ से गौओं का हरण किया और […]
आक्षेप संख्या—6 Rig Veda 1.103.6 “…The Hero, watching like a thief in ambush, goes parting the possessions of the godless.” Tr. Ralph T.H. Griffith आक्षेप का उत्तर— यहाँ ये महाशय वैदिक ईश्वर को चोर बता रहे हैं और उसके लिए ग्रिफिथ के द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं, जैसे ग्रिफिथ कोई वेदों […]
आक्षेप संख्या—5 Atharva Veda 4.31.7 “Let the King [Varuna] and Manyu, the warm emotion give us the wealth of both kinds-earned and gathered. Let our enemies overwhelmed with terror in their mind and spirit and defeated in their design run away.” Tr. Vaidyanath Shastri. Yaska Acharya also writes about terror, Nirukta 10.21 …These are hemstitch. […]
आक्षेप संख्या—4 Atharva Veda 5.20.4-5 “Let this war-drum victorious in the battle, loudly roaring and becoming the means of seizing whatever may be seized, be seen by all. Let this war-drum utter wonderful voice and let the army-controlling man capture the possessions of the enemies. Amid the conflict of the deadly weapons let the woman […]
आक्षेप संख्या—३ Atharva Veda 5.21.3 ‘Let this war drum made of wood, muffled with leather straps, dear to all the persons of human race and bedewed with ghee, speak terror to our foemen.” Tr. Vaidyanath Shastri वानस्पत्य: संभृत उस्रियाभिर्विश्वगोत्र्य:। प्रत्रासममित्रेभ्यो वदाज्येनाभिघारित:॥ भाष्य— हे दुन्दुभे! नक्कारे! तू जिस प्रकार (वानस्पत्य:) लकड़ी का बना हुआ होकर भी […]
विशेष वक्तव्य हम यहाँ वेद के कुछ उन मन्त्रों को उद्धृत करते हैं, जिनमें केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र के प्रति अत्यन्त प्रेम और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार की बात की गई है। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे। (यजु.36.18) अर्थात् प्राणिमात्र के प्रति मित्र के समान व्यवहार करें। समानी प्रपा सह वोऽन्नभाग:। (अथर्व.3.30.6) अर्थात् हम सब मनुष्यों के […]
आक्षेप संख्या—२ यहाँ सुलेमान रजवी ने ऋग्वेद ७.६.३ के दो भाष्य निम्र प्रकार उद्धृत किये हैं— Rig Veda 7.6.3 “May the fire divine chase away those infidels, who do not perform worship and who are uncivil in speech. They are niggards, unbelievers, say no tribute to fire divine and offer no homage. The fire divine […]