इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय में स्वामी रामदेव जी को एक अपराधी की भाँति प्रस्तुत करना नि:सन्देह भारत के भविष्य को दर्शाता है। मैं ऐसा इस कारण कह रहा हूँ कि यह आक्रमण श्री स्वामी रामदेव जी पर नहीं, बल्कि समूचे आयुर्वेद पर है। मैं मानता हूँ कि उनके विज्ञापनों में अतिशयोक्ति होगी, परन्तु भारत का कोई कथित श्रीमन्त मुझे यह बताये कि क्या अन्य सभी विज्ञापन पूर्णत: यथार्थ होते हैं? देशभर में दीवारों पर नाना प्रकार की यौनशक्तिवर्धक व कामोत्तेजक दवाओं के विज्ञापनों में क्या कुछ भी मिथ्या नहीं है? गुटखा, जर्दा, पान मसाला आदि नशीले एवं कैंसरकारक पदार्थों का भी सुन्दर ढंग से विज्ञापन करके देश की प्रजा को कैंसर के नरक में धकेला जा रहा है। कोई विज्ञापनकर्त्ता नहीं कहता कि कैंसर का रोगी बनने के लिए इन पदार्थों को खाइये। कहीं किसी सीमेंट का विज्ञापन होता है— ‘सदियों के लिए’। क्या संसार में कोई व्यक्ति मुझे बता सकता है कि क्या सीमेंट के मकान की आयु सैकड़ों वर्ष हो सकती है? कोई मोबाइल कम्पनी का विज्ञापनकर्त्ता नहीं बताता कि मोबाइल की तरंगें कैंसरकारक होती हैं। उज्ज्वला योजना का प्रचार करने वाले नहीं बताते कि एल.पी.जी. गैस अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करती है। सी.एन.जी. गैस से उत्पन्न नैनो कण कैंसरकारक होते हैं, फिर भी एल.पी.जी. व सी.एन.जी. क स्वच्छ ईंधन बताया जाता है। क्या यह झूठ नहीं है?
हर टैक्नोलॉजी के स्थूल लाभों का बखान किया जाता है, परन्तु उनसे होने वाले खतरनाक पर्यावरण प्रदूषण एवं तज्जन्य प्राकृतिक आपदाओं को छुपाया जाता है? सौन्दर्य प्रसाधनों व ठण्डे विषैले पेय पदार्थों का निर्लज्जता से मिथ्या व भ्रामक प्रचार किया जाता है। कोरोना काल में प्रचारित किया गया कि इस वायरस की चेन २१ दिन में टूट जाती है, इस कारण २१ दिन का लॉकडाउन लगाया, परन्तु चेन नहीं टूटी और बार-बार लॉकडाउन करके देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया गया, यह झूठ किसी को दिखाई नहीं दिया। ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ यह नारा प्रचारित किया गया और कहा गया कि वैक्सीन लगते ही सब ठीक हो जायेगा, परन्तु एक वैक्सीन से कुछ नहीं हुआ, तो दूसरी व तीसरी लगाई। इसके बावजूद नारा लगाया— ‘दवाई भी, कड़ाई भी’। सब इतना झूठ बोल रहे थे, सत्य कहने वालों को सताया जा रहा था, परन्तु कोई नहीं बोला। अब हार्ट अटैक से चलते-चलते युवा पीढ़ी मर रही है, परन्तु संसार में आई.एम.ए., मीडिया, सरकारें, न्यायालय सभी मौन हैं।
आई.एम.ए., जो स्वामी रामदेव जी के पीछे पड़ा है, उससे कोरोना काल में मैंने स्वयं अनेक प्रश्न पूछे थे। राष्ट्रपति जी व प्रधानमन्त्री जी को लिखे पत्रों द्वारा आई.एम.ए., आई.सी.एम.आर., ए.आई.आई.एम.एस., स्वास्थ्य मन्त्री आदि से चुनौतीपूर्वक प्रश्न पूछे थे, परन्तु कोई भी उत्तर देने का साहस नहींं कर पाया। इनको न्यायालय में कौन ले जायेगा और इन्हें कौन दण्ड देगा? न्यू वल्र्ड ऑर्डर (संयुक्त राष्ट्र संघ का एजेण्डा २०३०) के विषय में मैंने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव जी के नाम विस्तृत खुला पत्र लिखा, उसकी प्रति भारत सरकार व सभी राज्य सरकारों को भेजी, परन्तु सभी मौन रहे। कौन सत्य को मानने के लिए तैयार है? इनको स्वामी रामदेव जी ही एकमात्र झूठे व्यक्ति प्रतीत होते हैं और उपरिवर्णित सभी लोग सभी सत्य बोलते हैं? अभी चुनावी सभाओं में कितने झूठे वक्तव्य व विज्ञापन होते हैं, कोई न्यायालय इसका संज्ञान नहीं लेता।
जल, वायु, भोजन, वस्त्र एवं दैनिक उपयोग की सभी वस्तुओं तक में विभिन्न कम्पनियाँ विष घोल रही हैं और भ्रामक विज्ञापनों का प्रयोग करके इन्हें परोसा जा रहा है, परन्तु कोई नहींं बोलेगा। आज विष बेचने वाले सभी स्वतन्त्र हैं और आयुर्वेदिक दवा बेचने वाले स्वामी रामदेव जी एकमात्र अपराधी हैं? आज इन लोगों को एक संन्यासी को स्वामी बोलने में लज्जा आती है, केवल रामदेव कह रहे हैं, जबकि अपराधी मौलाना साद जैसे लोगों को सम्बोधित करते समय भी ‘मौलाना’ शब्द लगाना नहीं भूलते। आयुर्वेद की परम्परा की भाँति संन्यास की परम्परा हमारे आर्य्यावर्त (भारतवर्ष) की शान रही है और आज इन दोनों का ही उपहास किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं यह ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ के नारे को साकार करने की ही यह एक भूमिका मात्र तो नहीं है। दुर्भाग्य से यह नारा हमारे प्रधानमन्त्री जी ने ही कोरोना काल में लगाया था और प्रथम लहर में आयुर्वेद को दबा दिया गया था।
मैंने स्वयं उस समय कोरोना से पीड़ित होने के उपरान्त भी लगभग कार द्वारा १२०० कि.मी. की यात्रा की तथा कोरोनिल किट, जो स्वामी रामदेव जी ने ही बनाया था, का प्रयोग किया और पूर्ण स्वस्थ हुआ। अगले वर्ष पुन: रुग्ण हुआ, तब भी आयुर्वेद से ही स्वस्थ हुआ। मेरी दृष्टि में आयुर्वेदिक काढ़े से हजारों लोग कोरोना से बचे और कुछ रोगी स्वस्थ हुए, मरा कोई भी नहीं। इतने पर भी कोई कानून वा कोर्ट हमें प्रमाण पत्र देगा कि हम स्वस्थ हुए वा नहीं? हम इनसे पूछकर अपनी चिकित्सा करेंगे? बड़े-बड़े एलोपैथी चिकित्सालयों में लाखों मर गये, कितनों के गुर्दे निकालकर नरपिशाचों ने बेच दिये, ऐसे वीडियो भी हमने देखें। परिजनों को अंत्येष्टि संस्कार करने से वंचित किया गया और न जाने क्या-क्या पाप हुए, परन्तु तब न कानून बोला और न मीडिया। उस वैश्विक अराजकता में सभी सरकारें जैसे पर्दे से गायब हो गयी थीं, उस पर भी वे अपनी पीठ थपथपा रही थीं। वैज्ञानिक कितने झूठ बोलते हैं, यह बताने के लिए मैं कहाँ जाऊँ? सरकारों के सामने यह सत्य अनेक बार प्रस्तुत किया, परन्तु ऐसा लगता है मानो अब देश में न कहीं न्याय है, न कहीं दया व करुणा है, तब मानवता तो बचेगी कैसे? माँ भारती बिलख रही है, परन्तु कोई सुनने वाला नहीं है।
यद्यपि वर्तमान में एलोपैथी एक आपातकालीन जीवनरक्षक पद्धति है। यह शल्यक्रिया में अग्रणी है, परन्तु इसकी जननी आयुर्वेद ही है। आज जब पुत्र एक मोबाइल के लिए माँ की हत्या करते सुने जाते हैं, तब इस पापी युग में आयुर्वेद की हत्या क्यों नहीं होगी? मैं यह बात भी दृढ़ता से कहूँगा कि अनेक जटिल व पुराने रोग, जो एलोपैथी से दूर नहीं हो पाते, उन्हें आयुर्वेद से ही दूर किया जा सकता है। इस सत्य को कानून के बल पर दबाना मानवता से खिलवाड़ है, जो आज हो रहा है। क्या आई.एम.ए. अथवा कोई भी एजेंसी बतायेगी कि अधिकांश एलोपैथी दवाओं का कोई न कोई दुष्प्रभाव क्यों होता है, जिसके कारण चिकित्सा सुविधाएँ निरन्तर बढ़ने के साथ-साथ रोगों की संख्या भी निरन्तर बढ़ रही है। इसका उत्तरदायी कौन है, क्या कोई बतायेगा?
मेरे प्यारे देशवासियो! स्वामी रामदेव जी को भले ही आप उद्योगपति मानो और वे हैं भी उद्योगपति, परन्तु यह न भूलें कि इस व्यक्ति ने सम्पूर्ण भारतवर्ष में आयुर्वेद व योग-व्यायाम की क्रान्ति करके लाखों लोगों को घर बैठे नि:शुल्क स्वास्थ्य प्रदान किया है, स्वदेशी की अलख जगाई है। २१ जून को जो विश्व योगदिवस मनाया जाता है, वह भले ही मेरी दृष्टि में योग नहीं, बल्कि मात्र व्यायाम है, उसको विश्व में स्थापित करने का एकमात्र श्रेय स्वामी रामदेव जी को ही जाता है।
मैं भारत व विश्व के उन सभी महानुभावों, जो आयुर्वेद, यौगिक व्यायाम व स्वदेशी से प्यार करते हैं, से निवेदन करता हूँ कि वे स्वामी रामदेव जी के साथ अपने अनेक मतभेदों को भुलाकर आयुर्वेद पर आये इस गम्भीर संकट से निपटने के लिए उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो जायें। आज इस संन्यासी को लक्ष्य बनाया जा रहा है, कल किसी ओर की बारी आयेगी। एक-एक करके सनातन धर्म के सभी स्तम्भों पर चोट की जायेगी। आयुर्वेद वेद का ही एक उपवेद है। आयुर्वेद की हत्या वेद की हत्या होगी, राष्ट्र की हत्या होगी। वेद की हत्या सम्पूर्ण मानवता की हत्या होगी। इसलिए जाग जाओ, अन्यथा सब मिट जायेगा। स्वामी रामदेव जी के दण्डित होने से किसी को भी लाभ नहीं होगा, बल्कि आयुर्वेद के ध्वजवाहकों का मनोबल अवश्य टूट जायेगा और हमें विदेशी चिकित्सा पद्धति का बलपूर्वक दास बना दिया जायेगा।