आक्षेप संख्या १ (शेष) अपध्नन्तो अराव्ण: पवमाना: स्वर्दृश:। योनावृतस्य सीदत॥ (ऋ.९.१३.९) आधिभौतिक भाष्य १— (पवमाना:, स्वर्दृश:) सूर्य के समान तेजस्वी वेदवित् पवित्रात्मा व पुरुषार्थी राजा (अपघ्नन्त:, अराव्ण:) ऐसे नागरिक, जो धनवान् होने पर भी राष्ट्रहित में न्यायकारी राजा द्वारा लिये जाने वाले कर का भुगतान न करते हों अथवा कर चोरी करते हैं अथवा आवश्यक […]