…तो शीघ्र ही इस्लामिक स्टेट बन जाएगा

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आज अपने देश में हिन्दुत्व व सनातन की चर्चाएँ सुनने को मिलती हैं, नारे, झण्डे, डण्डे, शस्त्र संचालन आदि के प्रेरक और ओजस्वी भाषण देने वाले भी बहुत हैं। मुस्लिमों को गाली देने, उनसे हिन्‍दुओं को डराने, कुरान की जिहादी आयतों को सुनने तथा ऐसा करके हिन्दुओं को सतर्क रहने का उपदेश देने वाले आज बहुत सक्रिय हैं। इस कार्य में पूर्व (एक्स) मुस्लिम विद्वानों का भी सहारा लिया जा रहा है। वस्तुतः आज जो वक्ता मुस्लिमों तथा कुरान के विरोध में जितना उग्र बोलता है, वह उतना ही देशभक्त जाना व माना जाता है। इनमें से अनेक धर्मगुरु माने जाने वाले नाना प्रकार के चित्र-विचित्र आडम्बरों से सुसज्जित होकर हिन्दुओं को सनातन धर्म का प्रवचन करते हैं, नाना प्रकार की पूजा, तिलक, माला, प्रतिमा पूजन आदि से अधिक उनके सनातन की कोई पहचान व गति नहीं है।

मैं यह नहीं कहता कि सदियों से खूनी तलवार से इस धरती पर खूनी ताण्डव मचाने वाले जिहादियों के प्रति हिन्दुओं को सतर्क नहीं करें, परन्तु वे बर्बर आक्रान्ता हमारे देश में कैसे आ गए और वे कैसे हम पर शासन भी कर गए, यह भी विचारना होगा। हम वीर थे, पराक्रमी थे, परन्तु कुछ लोग सत्तालोलुप होकर वा अहंकार और ईर्ष्या के वशीभूत होकर परस्पर लड़ने लगे, परस्पर विश्वासघात करने लगे, तभी तो विदेशी बर्बर आक्रान्ता आ सके। क्या देश में आज ऐसे गद्दार नहीं हैं? आज तो हर कोई एक-दूसरे को नीचे गिराने में लगा है। देश की वर्तमान दुर्दशा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी दुर्दशा पूर्व में सम्‍भवत: कभी नहीं रही होगी। अभी तो हिन्दुओं के विनाश का धुंधला चित्र ही दिखाई दे रहा है, वह धीरे-धीरे स्पष्ट होता चला जायेगा। यह दुर्दशा दुष्‍टों द्वारा बड़ी योजनापूर्वक उत्पन्न की गई है और निरन्‍तर देश के शत्रुओं का अदृश्य जाल धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। कुछ शत्रु विदेशों में बैठे हैं, तो कुछ अपने ही देश में श्वेतपोश ऐश्वर्यसम्‍पन्न होकर बैठे विदेशि‍यों के संकेतों पर कार्य कर रहे हैं।

देश के शत्रु जानते हैं कि जब तक हिन्दू का विनाश नहीं होगा, तब तक भारत का विनाश नहीं हो पायेगा। वे भारत को इस्लामी वा ईसाई राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इस्लाम, ईसाई व यहूदी मत भले ही आज परस्‍पर शत्रु प्रतीत हो रहे हों वा वास्तव में हों, परन्तु कुरान व बाइबि‍ल के मूल सिद्धान्‍त बहुत समान हैं, इस कारण वे कभी न कभी एक हो भी सकते हैं, परन्तु हिन्दुओं से उनके सिद्धान्‍त बहुत भिन्न हैं, इस कारण हिन्‍दू और सनातन धर्म को नष्‍ट करना उनका दूरगामी लक्ष्य हो सकता है। हमारे इतिहास को विकृत करने वाले मुस्लिम नहीं, कोई और हैं, यह बात भी भूलनी नहीं चाहिए। हमारे इतिहास तथा धार्मिक ग्रन्‍थों को विकृत करके सनातन धर्म को बाह्याडम्‍बरों तक सीमित करके, वेद के यथार्थ से दूर करके, उनके भाष्‍य भ्रष्ट करके हिन्दुओं की जड़ों को काटने वाले कौन हैं, यह सोचने का अवसर किसके पास है? वेद से अधिक महत्ता गीता, भागवत आदि पुराण व रामचरितमानस को देना तथा आर्य के स्थान पर हिन्‍दू शब्द का प्रयोग करना और इसमें गौरव भी बतलाना सम्‍पूर्ण वैदिक साहित्य, जो सनातन धर्म तथा इस आर्यावर्त (भारत) राष्ट्र के प्राचीन गौरव का आधार है, का घोर अपमान है। कर्मणा वर्ण व्यवस्था के स्थान पर जन्‍मना जाति व्यवस्था ने इस देश को गर्त में ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसको आधार बनाकर ऊँच-नीच, छुआछूत, भेदभाव ने हिन्दुओं (वस्तुत: आर्यों) को खण्‍ड-खण्‍ड कर डाला है। भारत के वर्तमान संविधान एवं कानूनों ने जन्‍मना जाति के आधार पर आरक्षण आदि सुविधाएँ देकर हिन्दुओं को नष्ट करने के लिए विदेशी षड्यन्‍त्र को और अधिक धारदार बना दिया है। संविधान व कानून का कार्य था, हिन्दुओं से जन्‍मना जाति व्यवस्था मिटाकर कर्मणा वर्ण व्यवस्था को पुनर्जीवित करना, जिससे कोई भेदभाव रहे ही नहीं और योग्यता को श्रेष्ठता भी प्राप्त हो, परन्तु हाय री अभागी राजनीति! तुझे देश में एकता व योग्यता की चाह ही कहाँ है ?

इस आरक्षण की नींव कभी अंग्रेजों ने ही रखी थी, ऐसा सुना जाता है। वे तो सम्‍भवत: सफल नहीं हुए, परन्तु इन काले अंग्रेजों ने गोरों की साधना को ऐसा फलीभूत कर दिया कि आज कोई भी राजनैतिक दल वा नेता, समाज सुधारक, अभिनेता, धर्माचार्य इसके विरुद्ध बोलने का साहस ही नहीं कर सकता। आज हिन्‍दू समाज को खण्‍डित करने का यह सबसे सुगम उपाय बन गया है। इसी पाप के पोषण के लिए एक संगठन बामसेफ हिन्दुओं को दो भागों में बाँटता है- सवर्ण एवं दलित। इनमें से दलितों को मूलनिवासी बताकर देश पर उनका ही अधिकार जताता है तथा सवर्णों को विदेशी आक्रमणकारी बताता है। इसकी पटकथा विदेशी लिखते हैं, जो ऋग्वेद की कल्पित व्याख्या करके हिन्दुओं व सनातन धर्म को सदा के लिए समाप्त करने का उद्योग कर रहे हैं। इस प्रकार हिन्दुओं में भेदभाव उत्पन्न करके अधिकार व अनधिकार के वैचारिक युद्ध का बीजारोपण करते हैं। वे जानते हैं कि कथित दलितों को उनके साथ सदियों से होते आ रहे भेदभाव के नाम पर शीघ्र ही हिन्दुओं से पृथक् किया जा सकता है। इस कारण वे सवर्णों को हिन्‍दू तथा दलितों को गैर हिन्‍दू बताते हैं। आज का दलित वर्ग इसी षड्यन्‍त्र में फँसता प्रतीत हो रहा है। इधर विचित्र दुर्योग देखें कि कानून भी दलित वर्ग को आरक्षण देने लग जाता है, उन्हें योग्यता में भारी छूट का प्रावधान किया जाता है, भले ही इसका परिणाम कुछ भी क्यों न हो ? उन्हें कर्मणा वर्ण व्यवस्था को जानने व समझने तथा सम्‍पूर्ण जनता को सुखी व समरसता के साथ रहने से कोई प्रयोजन नहीं है। उन्हें तो अंग्रेजों के ‘फूट डालो और राज करो’ का मन्‍त्र याद आ गया और त्‍वरित इसे लागू भी कर दिया।

इतने से हिन्दुओं को बहुत दुर्बल नहीं बनाया जा सकेगा, ऐसा विचार करके बामसेफ ने राजपूत, ब्राह्मण एवं बनियों के अतिरिक्त अन्य सवर्णों को पिछड़ा तथा मूलनिवासी कहना प्रारम्‍भ किया। उधर भारत की विभाजनकारी राजनीति ने भी सवर्णों के कई टुकड़े करके सवर्ण, पिछड़ा व अति पिछड़ा आदि भागों में बांटकर पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण का लोभ देकर अलग कर दिया। मण्‍डल कमीशन की रिपोर्ट लागू करके हिन्दुओं को और भी खण्‍ड-खण्‍ड कर दिया। स्‍वभावत: लोभी और स्वार्थी हिन्‍दू सहजता से बिखर गया। जो स्वयं को वीर क्षत्रियों का वंशज कहते हैं, वे स्वयं को पिछड़ा कहने में ही पगड़ी का स्वाभिमान समझने लग गये। कहीं-कहीं तो राजाओं को अपने पूर्वज बताने वाले स्वयं को पिछड़ा मानने से सन्‍तुष्ट न रहकर जनजाति वर्ग में सम्मिलित होकर आरक्षण के लिए संघर्ष करने लगे। कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान में मीणा व गुर्जरों की सेनाएँ युद्धक्षेत्र सजाने लगी थीं। अब देश के शत्रुओं को सभी राजनेताओं का सहज ही साथ मिल गया और छुआछूत मिटती गई, परन्तु आरक्षण की छुआछूत बढ़ती गई।

अब बामसेफ संगठन केवल राजपूत, ब्राह्मण व बनिये को ही हिन्‍दू मानता है और इन्हें विदेशी बताकर गृहयुद्ध का बीजारोपण करता है। आरक्षण की कतार में खड़े वर्ग इस कुकृत्य को प्रसन्नमुख देख रहे हैं। इस आरक्षण ने पिछड़ों में पिछड़े, दलितों में दलित उत्पन्न कर दिए हैं। जनजाति वर्ग में भी भारी विषमताएँ उत्पन्न कर दी हैं। मेवाड़ अंचल का जनजाति वर्ग पूर्वी राजस्थान के जागीरदार मीणाओं के सम्मुख कहीं भी नहीं ठहरता। कभी न कभी इनके बीच भीषण संघर्ष होगा। इतने से भी देश के शत्रुओं का मन नहीं भरा। वे अब गृहयुद्ध को शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्‍भ करना चाहते हैं। अब उनकी कुदृष्टि उन वर्गों पर पड़ी है, जिनकी एकता होने पर उनके स्वप्न को पूरा करना सम्‍भव नहीं है। जो वर्ग सदियों से वीरतापूर्वक शत्रुओं से लड़ते आये हैं। जो आज भी सेना में सर्वाधिक संख्या में भर्ती होते तथा बलिदान व शौर्य का नया इतिहास रचते तथा वीरता पदक प्राप्त करते हैं। अब उन वर्गों के बीच संघर्ष उत्पन्न करके उन सबको कमजोर करना इनका लक्ष्य है। इनमें सबसे प्रथम निशाना राजपूत है, जिनके तथा जिनके महान् पूर्वजों के विरुद्ध अपशब्द बोलने के लिए राजनेताओं को प्रेरित किया जा रहा है।

इस क्रम में कोई दुष्ट नेता महाराणा सांगा को गद्दार कह देता है, तो कोई सभी राजपूतों को कायर बता देता है। ये दोनों कानून में माननीय सांसद कहे जाते हैं, जिनकी अपनी कोई योग्यता नहीं है और ये त्याग व बलिदान तो जानते ही नहीं हैं। इस पर राजपूत व दलित समाज को एक-दूसरे का शत्रु बना दिया जाता है। कुछ दुष्ट नेता भी दलितों के वोट लेने के लिए राजपूतों के विरुद्ध विषवमन करते हैं। अब दूसरे बड़बोले नेता ने जाट व राजपूतों के बीच आग लगाने का घृणित प्रयास किया है। दोनों ही समाजों के लोग अपने हित-अहित को नहीं जानते। वे नहीं जानते कि महापुरुष किसी वर्ग विशेष के नहीं होते, बल्कि सम्‍पूर्ण देश के होते हैं। उनका जो अपमान करता है, उसका बहिष्कार करना, उसको चुनाव में हराना सभी का साझा कर्त्तव्य है। इन भ्रष्ट राजनेताओं को महापुरुषों पर टीका-टिप्पणी करके समाज को बाँटने का अधिकार किसने दिया है?

कुछ वर्ष पूर्व सम्राट् मिहिर भोज के नाम पर गुर्जरों को राजपूतों के विरुद्ध भड़काया गया और वे भी आमने-सामने हो गए। उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्‍यमन्‍त्री के कारण प्रदेश के कुछ यादव मुसलमानों के साथ मिलकर स्वयं को दूर समझने लगे हैं। यादवों को तो कुछ नहीं मिलेगा, परन्‍तु नेताजी का परिवार अवश्य सत्ता का भोग भोगने का प्रयास करेगा। वे नेताजी स्वयं को भगवान् श्रीकृष्ण का वंशज कहाने वाले होकर भी गाय से घृणा करने लगे हैं। कोई भी यदुवंशी इसे कैसे स्वीकार कर सकता है ? इस प्रकार राजपूत, जाट, गुर्जर व यादव चारों ही स्वभावत: सैनिक वृत्ति के होते हुए दुष्ट लोगों के जाल में फंसकर परस्पर एक-दूसरे के विरुद्ध बिगुल बजा रहे हैं। उधर वीर सिक्‍खों, जिन्होंने देश के लिए बहुत बलिदान दिए हैं, को खालिस्तान के स्वप्न दिखाकर हिन्दुओं का विरोधी बनाने का प्रयास किया गया तथा इस विष भरे वातावरण में कभी-कभी ऐसा प्रयास भी किया जाता है कि हर सिक्‍ख खालिस्तानी प्रतीत होवे। जो सिक्‍ख हिन्दुओं के रक्षक थे, वे स्वयं को उनसे पृथक् अनुभव कर रहे हैं। दक्षिण में मराठी मानुष के नाम पर मराठाओं को उकसाया जाता है। इस प्रकार सेना में सर्वाधिक संख्या में कार्य कर रहे वीर वर्गों को परस्पर लड़ाकर रहा-सहा हिन्दुत्व भी समाप्त करने का तीव्र अभियान चल रहा है। जब देश में इनके बीच संघर्ष व वैमनस्‍य बढ़ेगा, तब सेना में भी कभी न कभी इनमें टकराव हो सकता है। इधर जातियों की गणना की घोषणा आग में घी का काम कर सकती है। अपने स्वार्थ के लिए हिन्दुओं को बाँटना देश के प्रति विद्रोह है।

विचारो हिन्दुओ ! कहाँ है हिन्‍दू, कहाँ है हिन्दुत्व, कहाँ हैं हिन्दुत्व के रखवाले बड़े-बड़े धर्मगुरु व राष्‍ट्रवादी वक्ता-प्रवक्ता ? ये सभी अपने-अपने कथित जातीय समाजों की बेड़‍ियों में जकड़े हिन्दुत्व पर ओजस्वी व्याख्यान देते हैं। मुस्लिमों को गाली देकर ही हिन्दुओं की रक्षा हो जाए, तब तो कुछ करना ही नहीं है ? हिन्‍दू जाति‍यों, भाषाओं, परम्‍पराओं, क्षेत्रवाद आदि में बिखर रहा है और हम पी.ओ.के. के लेने की बात कर रहे हैं। क्या पी.ओ.के. लेकर इस देश में मुस्लिमों की संख्या को और नहीं बढ़ा देंगे ? पाकिस्तान के गरीब व कट्टर मुस्लिमों, जो निकट भविष्य में जिहादी ही बनेंगे, को हिन्दुओं के धन से पालना क्‍या बुद्धिमानी होगी ? यदि हिन्‍दू परस्पर लड़ता रहा और मुस्लिम एक होकर अपनी वृद्धि करता रहा, तो शीघ्र ही यह देश इस्लामिक स्टेट बन जाएगा, तब न कोई राजपूत, जाट, सिक्‍ख, गुर्जर, यादव, मराठा आदि बचेगा, न कोई ब्राह्मण, बनिया, बिश्नोई, प्रजापत, चौधरी आदि वा न कोई दलित बचेगा, तब इन सबको कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा। जिहादी जाति पूछकर नहीं मारते, बल्कि प्रत्येक गैर इस्लामी को क्रूरतापूर्वक मारते हैं। चाहे कोई उनकी आज कितनी ही चापलूसी क्‍यों न कर ले, वह उनसे बचेगा ही नहीं, क्योंकि वे इसे ही अपना दीन समझते हैं।

हिन्‍दुओ विचारो! आपके यहाँ जाति‍यों के नाम पर पृथक्-पृथक् धर्मशालाएँ व छात्रावास बनाए जाते हैं, परन्तु मुस्लिमों में केवल मुस्लिम नाम से ही मुसाफिरखाना व मदरसा होता है। आपके यहाँ जातीय वैमनस्‍य व आरक्षण की माँग की जाती है, जबकि वहाँ केवल इस्लाम की चर्चा होती है। आपके यहाँ मन्‍दिर, भण्‍डारे, प्राण-प्रतिष्ठा आदि आडम्‍बरों व विवाहों पर धन का अपव्‍यय होता है और वे इस्लाम को बढ़ाने, दूसरों को मिटाने वा उन्‍हें इस्लाम में लाने पर धन व्‍यय करते हैं। आपके यहाँ किसी को जाति व धर्म से बाहर निकालने के कई सुगम मार्ग हैं अर्थात् अपनी संख्या घटाने में आप अति उत्साहित रहते हैं और वे गैर इस्लामी लोगों का इस्लाम में स्वागत करने के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसे में आप उनको भले ही कितनी ही गाली क्यों न दें, वे एक दिन आपको निगल ही जायेंगे। उन्हें गाली देने के स्थान पर उनकी कुछ अच्छाइयों को ग्रहण करो, बुराइयों से दूर रहो तथा अपने इन सब दोषों, जिनके कारण आपका पतन हुआ है, को उखाड़ फेंको और अपने पूर्वजों के आदर्शों को अपनाओ, अन्यथा उत्तेजक भाषणों से कोई लाभ नहीं होने वाला, आग लगने में शीघ्रता अवश्य होगी।

इसलिए मैं आज उन सबसे, जो स्वयं को माँ भारती का पुत्र कहते हैं, हिन्‍दू (आर्य) कहते हैं, से आग्रह करता हूँ, विनम्र अपील करता हूँ कि वे स्‍वयं को अपने-अपने जातीय अहंकार व आरक्षण की भीख दोनों से ही तुरन्‍त पृथक् कर लें, अन्यथा आपके ही जातीय नेता व स्वार्थी राजनेता दोनों ही आपको व सम्‍पूर्ण हिन्‍दू समाज को बर्बाद कर देंगे। अपनों की कुछ कटु बातें सहन कर भी लो, परन्तु देश को बचा लो। देश बचेगा, तो हम भी बचेंगे और देश मिट जाएगा, तो हम सब भी मिट जायेंगे। तब देश के शत्रुओं को ही आनन्‍द होगा और आपकी सन्‍तानें खून के आँसू रोयेंगी। आशा है आप सभी अपना मान-अपमान भूलकर देश का मान बचायेंगे, यही वीरत्‍व है, यही शूरत्‍व है, यही आर्यत्‍व है। सनातन वा हिन्‍दू-हिन्‍दू का नाम जपने वाले नेताओं व धर्मगुरुओं को पूछें कि वे हिन्दुओं के इस विभाजन को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं ? वे निर्धन व बेरोजगार लोगों के लिए क्या विचार रखते हैं ? आज आरक्षण के नाम पर इन वर्गों को छला जा रहा है। यदि कर्मणा वर्ण व्यवस्था की स्थापना हो जाये, तो सम्‍पूर्ण भारतवर्ष एकता, समृद्धि, विद्या जैसे सुभूषणों से समलंकृत होकर विश्व में एक महाशक्ति बन सकता है, परन्तु इसके लिए राजसत्ता व धर्मसत्ता दोनों को ही धर्मात्मा, सुयोग्य, सच्चरित्र व निष्पक्ष नेतृत्व चाहिए और विवेकशील हिन्‍दू समाज चाहिए।

—आचार्य अग्निव्रत
संस्थापक, वैदिक एवं आधुनिक भौतिकी शोध संस्थान

🌐 https://vaidicphysics.org

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