वेद में विज्ञान के साथ-साथ सभी प्रकार का ज्ञान सूत्ररूप में विद्यमान है और भारत देश वेदविद्या के कारण विश्वगुरु रहा है, ऐसा हम बहुत लम्बे काल से सुनते व पढ़ते आये हैं। वेद विद्या के कारण हम विश्वगुरु थे, तो हजारों वर्षों की गुलामी क्यों भोगनी पड़ी और अब वेदविद्या के बल पर विश्व में अग्रणी क्यों नहीं बने? इसके उत्तर में यदि कहा जाता है कि वेद की गलत समझ के कारण और ठीक समझ का प्रयास न करने के कारण वर्तमान स्थिति बनी, तो जन साधारण के साथ बुद्धिजीवी व वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में केवल इतनी बात ही आती है कि वेद में धर्म व समाज की बातों के साथ कुछ विज्ञान सम्बन्धित सामान्य बातें जैसे आयुर्वेद, हवन आदि की बातें तो हो सकती हैं पर विज्ञान की सैद्धान्तिक बातें, जिनका फिजिक्स, गणित, रसायन आदि के सूत्रों से सम्बन्ध है और जो सृष्टि की प्रत्येक गतिविधि वा क्रियाकलाप की व्याख्या करती है, ऐसा विज्ञान वेद में कहाँ है? सम्भवतः नहीं है।
वेदविज्ञान से पहले वर्तमान में जिसको विज्ञान माना जाता है, उसको जान लेना भी आवश्यक है। यों तो विज्ञान की अनेकों शाखायें हैं, पर सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत विज्ञान भौतिकी (फिजिक्स) है। भौतिकी में भी सबसे जटिल और आधारभूत शाखा कण भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) है, जिसमें सृष्टि के मूल कणों और विभिन्न बलों (फोर्स) के बारे अध्ययन किया जाता है। भौतिकी विकास की यात्रा को भी थोड़ा जान लें। भौतिकी के साथ ही विज्ञान की अन्य शाखाओं की विकास यात्रा का इतिहास (आधुनिक विज्ञान) लगभग 350 वर्षों में आ जाता है। भौतिकी की 350 वर्षों की यात्रा लगभग इस प्रकार रही। सत्तरहवीं शताब्दीं के मध्य से (न्यूटन, गैलीलियो, डिकार्टे, लाप्लास) उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक भौतिकी में क्लासिकल यान्त्रिकी (गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण बल) का मुख्य रोल रहा और इसको विश्व की यान्त्रिकी व्याख्या का युग कहते हैं। इसके बाद बीसवीं शताब्दी की दूसरी दशाब्दी तक (हाईजन, मैक्सवैल, थामस यंग, हट्र्ज, फ्रेजनल) विश्व घटनाओं की व्याख्या विद्युत् चुम्ब्कीय बलों के माध्यम से की जाने लगी और यह समय विश्व के विद्युत् चुम्बकीय माॅडल का समय रहा।
बीसवीं शताब्दी की तीसरी दशाब्दी से सातवीं दशाब्दी तक का समय (मैक्स प्लांक, आईन्स्टाईन, डी ब्रोग्ली, हेजनवर्ग, नील्स बोहर, रुदरफोर्ड) क्वांटम यान्त्रिकी व सापेक्षता का समय रहा और इस काल अवधि में घटनाओं की व्याख्या क्वांटम और सापेक्षता सिद्धान्तांे के माध्यम से होने के कारण क्वांटम यान्त्रिकी माॅडल का समय कहलाया। इसी समय 1928 में पाॅल डिराक ने इलेक्ट्राॅन की गति व ऊर्जा के लिये सापेक्षता सिद्धान्त के साथ समीकरण निकाला, तो ऊर्जा के दो उत्तर आये एक धन ऊर्जा के लिये और दूसरा ऋण ऊर्जा के लिये। चैथी दशाब्दी के साथ ब्रिटिश भौतिकविद् पाॅल डिराक ने विचार दिया कि जिसको हम शून्य (वैक्यूम) कहते हैं, वह वास्तव में शून्य न होकर पदार्थ व ऊर्जा का अक्षय भण्डार है। तब से लेकर वर्तमान तक भौतिकविद् इस वैक्यूम के गुण धर्मं समझने, वैक्यूम का वास्तविक जगत् के कणों व बल क्षेत्रों के साथ क्या सम्बन्ंध है? यह जानने का प्रयास किया जा रहा है। वैक्यूम का विस्तृत स्तर पर खगोलीय घटनाओं पर प्रभाव के अध्ययन में डार्क मैटर व डार्क एनर्जी की बात जोड़ी जाती है। वैक्यूम के गुण धर्म व क्रियाओं को लेकर भौतिकविदों के पांच – छह तरह के विचार हैं। सभी भौतिकविद् (पाॅल डिराक, जी. आई. नान, ए. ए. ग्रीव, जाॅन व्हीलर, स्टीवन वेनबर्ग, अब्दुल सलाम) एक थ्यौरी पर सहमत नहीं हैं। यह समय विश्व के अध्ययन का वैक्यूम माॅडल कहलाता है। विज्ञान की परिवर्तित होती थ्यौरीज के बारे प्रसिद्ध भौतिकविद् रिचर्ड फीनमेन कहते हैं कि वैक्यूम की पांच – छह प्रकार थ्यौरीज के बारे में अपने-अपने तर्क हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आईन्स्टीन के अनुसार विज्ञान की कोई भी थ्यौरी अन्तिम नहीं कही जा सकती। नोबेल पुरस्कार विजेता डी ब्रोग्ली के अनुसार विज्ञान की नई थ्यौरी जितनी समस्यायें सुलझाती हैं, उससे कहीं अधिक नई समस्यायें सामने लाती हैं।
तो जब विज्ञान की उच्चतम शाखा भौतिकी के सामने वर्तमान में मूल कणों, विभिन्न बलों उनके क्षेत्रों, सृष्टि प्रक्रिया व वैक्यूम के बारे भिन्न-2 मत हैं और वर्तमान में कण भौतिकी बहुत सी समस्याओं का सामना कर रही है, ऐसे समय में यदि कोई वेद से विज्ञान निकाल कर भौतिक विज्ञान की समस्याओं का समाधान करे, भौतिकी को नई दिशा दे, तो वेद में विज्ञान मानने में क्या संदेह रह जायेगा? सन्देह करने वाले वैज्ञानिकों के सामने प्रश्न किये जायें और उनसे उत्तर न दिये जाने पर उन प्रश्नों का उत्तर दिया जावे, तो उन वैज्ञानिकों के सामने वेद में विज्ञान मानने के अतिरिक्त क्या विकल्प रह जाता है?
वर्तमान में एक वेदविज्ञानी मनीषी ने ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण से वर्तमान भौतिकी समस्याओं को हल करने वाला एवं विज्ञान को नई दिशा देने वाला विज्ञान निकाला है। वैज्ञानिकों के सामने (उच्च स्तर के भौतिकविद् व नोबेल पुरस्कार विजेता) एक सौ प्रश्न रखे हैं। प्रश्न ही नहीं, उनके समाधान की घोषणा भी की है। क्या यह वेद की स्थापना और यह वेद के उद्गम स्थान भारतवर्ष के लिए गौरव की बात नहीं है?
एक और आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया है। आस्ट्रिया के प्रसिद्ध भौतिकविद् विक्टर नाइसकाॅफ (1908-2002) ने एक आॅकलन किया कि दुनिया में केवल विज्ञान के सैद्धान्तिक शोध पर 1971 तक लगभग 30 अरब डालर धन खर्च हुआ। यह खर्च प्रत्येक 10 वर्ष के बाद दुगना हो जाता है। इस प्रकार वर्तमान दशाब्दी का खर्च 960 अरब डालर बनता है। सारे विश्व में सैद्धन्तिक भौतिकी के शोध में दस हजार से अधिक वैज्ञानिक कार्यरत हैं। हमारे वेदमनीषी ने दस हजार शोधार्थियों के मुकाबले अकेले ने कुल (960 अरब डालर) के 34 लाख वें हिस्से के बराबर खर्च में वेद से उच्चस्तर का विज्ञान निकालकर दिखाया है।
यदि खर्च की दृष्टि से देखें, तो विश्व के कुल 208 देशों में से हम केवल 100 देश लें और बाकी को छोड़ दें, तो प्रत्येक देश के हिस्से शोध का दस वर्ष का खर्च 672 अरब रु. आता है। एक वर्ष का खर्च 67.2 अरब हुआ। भारत विश्व के 100 देशों के मुकाबले बहुत बड़ा देश है, फिर भी छोटे देशों के बराबर हिस्सा मानें, तो सैद्धान्तिक विज्ञान पर वार्षिक खर्च 67.2 अरब रु. है। इस खर्च का दसवां भाग अर्थात् 6.7 अरब रु. वार्षिक भी हम वेद के शोध पर खर्च करें, तो आश्चर्यजनक परिणाम आ सकते हैं। यह देशवासियों के लिये और वर्तमान सरकार, जो वेद को हमारी संस्कृति का आधार मानती है, के लिये अद्भुत अवसर है, तो हम ऐसे वेदमनीषी को भरपूर सहयोग देकर वेद की प्रतिष्ठा को बचालें अन्यथा वेद नहीं रहेगा, तो हमारी संस्कृति नष्ट हो जायेगी और यदि संस्कृति नष्ट हो गई, तो हम गुलामों का टोला बनकर रह जायेंगे। विदेशी लोग बड़े सयाने हैं (तभी तो हम उनके गुलाम रहे), यदि हम इस वेद मनीषी जैसी मूल्यवान् धरोहर को नहीं सम्भाल पाये, तो विदेशी लोग किसी प्रकार इस शोध का लाभ भी लेंगे और वेद का नाम भी नहीं लेंगे।
सम्पूर्ण मानवता की दृष्टि से देखें, तो जिस अधिकारपूर्वक यह वेद विज्ञानी वैज्ञानिकों के सामने वेद के विज्ञान का प्रदर्शन कर रहा है, इसी प्रकार चुनौतीपूर्वक मैं भी कह सकता हूँ कि जब तक विज्ञान को वेद का मार्गदर्शन नहीं मिलता, तब तक विज्ञान कितनी ही उन्नत्ति कर ले, मानव को सुखी नहीं बना सकता।
ये वेद मनीषी, जो वर्तमान समय के महानतम वेद वैज्ञानिक हैं, कोई और नहीं, श्रद्धेय आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक हैं, जो श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास, भागल भीम (भीनमाल) जालोर, राजस्थान के एक छोटे से स्थान पर रह कर अति अल्प साधनों के साथ घोर तप करके ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ से विशाल विज्ञान को निकाल कर ‘वेद विज्ञान आलोक’ नामक ग्रन्थ (2800 पृष्ठ) जन भाषा (हिन्दी) में दिया है। ‘वेद विज्ञान आलोक’ ग्रन्थ महान् वैज्ञानिक न्यूटन के ग्रन्थ ‘प्रिन्सीपिया’ से भी महत्वपूर्ण है। महाभारत काल से वर्तमान तक के 5000 वर्षों में एक महर्षि दयानन्द सरस्वती ऐसे वेद मनीषी थे, जो वेद को प्रत्येक दृष्टि से स्थापित कर सकते थे, पर हमारा दुर्भाग्य कि हम गुलाम थे, अंगे्रज ने उनकी हत्या करवा दी। ऋषि के बाद वर्तमान में आचार्य अग्निव्रत के माध्यम से हमारा भाग्य उदय हुआ है। वैदिक फिजिक्स यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से प्रबुद्ध लोगों को वैदिक विज्ञान से जोड़ने का कार्य आचार्य जी अपने सीमित साधनों से कर भी रहे हैं। हम और हमारी सरकार यदि, वेद भक्त हैं, देशभक्त हैं और अपनी संस्कृति से प्रेम है, तो आचार्य अग्निव्रत के वेद को प्रतिष्ठित करने जैसे ठोस और महत्वपूर्ण कार्य में भरपूर सहयोग दें, यह अद्भूत अवसर है।
डाॅ. भूपसिंह रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर – भौतिकी विद्यानगर, भिवानी (हरियाणा) मोबाइल न. 9992334407